
क्या आपको पता है कि किन्नरों की देवी कौन हैं जिनकी पूजा बहुत विधि-विधान से की जाती है? इनका भव्य मंदिर भी मौजूद है जिसके बारे में हम आज आपको बताते हैं।
क्या आपने बहुचरा माता के बारे में सुना है? गुजरात के मेहसाणा जिले में बेचारजी कस्बे में स्थित एक विशाल मंदिर है जहां बहुचरा माता की पूजा की जाती है। बहुचरा माता को मुर्गे वाली माता भी कहा जाता है और इनका जिक्र बहुत सारी जगहों पर होता है। बहुचरा माता मंदिर वैसे तो बहुत प्रसिद्ध है, लेकिन किन्नरों के बीच इसकी अपनी अलग पहचान है।
किन्नरों के लिए बहुचरा माता मान्य हैं और इसके पीछे भी एक लोककथा प्रचलित है। आज हम बहुचरा माता के बारे में आपको बताने जा रहे हैं कुछ फैक्ट्स।
क्या कहती हैं लोक कथाएं?
बहुचरा माता को लेकर कई सारी लोक कथाएं हैं। इसमें से तीन कथाएं अहम हैं जिन्हें अधिकतर लोग सच मानते हैं। सबसे पहले जानते हैं इन्हीं लोक कथाओं के बारे में।
शक्तिपीठ का हिस्सा
जब माता सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे तब भगवान शिव ने उनके पार्थिव शरीर को उठाकर पूरे विश्व में तांडव करना शुरू कर दिया था। शिव के क्रोध और सती की तपस्या को देख सभी देवी-देवता घबरा गए थे। तब सबने भगवान विष्णु से मदद मांगी और भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए थे। ये टुकड़े पृथ्वी पर 55 जगहों पर गिरे थे जिनमें से एक बहुचरा भी है।
माना जाता है जब मां सती के टुकड़े पृथ्वी पर गिरे थे तो बहुचरा में माता सती के हाथ गिरे थे। यहां पर ही शक्तिपीठ की स्थापना हो गई थी। भगवान शिव के तांडव के समय इस स्थान को पवित्र मान लिया गया था। तब से ही यहां की मान्यता है।
किन्नरों की माता
बहुचरा मां के बारे में एक लोक कथा प्रचलित है। बहुचरा मां एक बंजारे की बेटी थीं। एक बार यात्रा करते समय उनपर और उनकी बहनों पर बापिया नामक एक डाकू ने हमला किया। उस वक्त बहनों ने अपने ब्रेस्ट काट दिए और मौत को गले लगा लिया। बहुचरा मां ने बापिया को श्राप दिया कि वो नपुंसक बन जाए। बापिया को श्राप से मुक्ति पाने के लिए महिलाओं की तरह सजना था और बहुचरा मां की उपासना करनी थी। तब से ही बहुचरा मां किन्नरों की माता बन गईं। (मुगल साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली किन्नर के बारे में जानें)
संतान दात्री देवी
ऐसा माना जाता है कि बहुचरा माता संतान दात्री देवी हैं। जो जोड़े यहां आकर पूजा-पाठ करते हैं उनकी संतान प्राप्ति की उम्मीद पूरी हो जाती है। यहां कई नवविवाहित जोड़े आकर प्रार्थना करते हैं और मन्नत मांगते हैं।
कितना पुराना है मंदिर?
मान्यता है कि ये मंदिर 1783 में बनाया गया था और इसमें बहुत सारे खंबे हैं जिनमें नक्काशी बनी हुई है। इसके साथ तोरण और दीवारों को वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाए गए हैं। बहुचर माता की सवारी एक मुर्गे को माना जाता है। मुर्गा गुजरात के सोलंकी साम्राज्य का प्रतीक माना जाता है।
इस मंदिर के अंदर तीन अलग परिसर हैं और हर स्थान का अपना अलग महत्व है। वैसे इस स्थान से तीन किलोमीटर दूर एक और बहुचर माता का मंदिर है जिसे लोग मानते हैं।
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