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‘जहर’ को जूस बनाकर पी गया ये आदमी,और फिर

उत्तराखंड की पहाड़ियां फल, फूल और तमाम तरह की औषधियों से भरपूर हैं, लेकिन वहां मौजूद लोग आज भी कई फलों और औषधियों के बारे में नहीं जानते हैं। इसके परिणाम स्वरूप दवाइयां, फल बिना प्रयोग के ही खराब हो जाते हैं। इन्हीं जंगली फलों में से एक है ‘अमेस’, जिसके फायदे इंसानों तक से अनजान हैं। इसे जहर कहते हैं और दूसरों को इसे खाने से रोकते हैं। लेकिन कनोल गांव के थान सिंह ने इस ‘जहर’ को अमृत में बदल दिया.

उत्तराखंड के चमोली जिले के नंदानगर घाट विकासखंड के कनोल गांव के निवासी थान सिंह अमेस की खेती को आर्थिकी का जरिया बनाकर उससे अपनी आजीविका चलाने का काम कर रहें हैं. उसके लिए उन्होंने अपनी 6 नाली जमीन पर अमेस के 500 पौधों का रोपण किया था. जो अब फल देने लगे हैं और जिससे वे जूस बनाकर बाजार में बेचने का काम कर रहे हैं.

लोग समझते थे जहर

कोरोना काल से पहले थान सिंह दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे. कोरोना काल में जब रोजगार छूटा तो अपने गांव लौट आये. बकौल थान सिंह एक दिन वे अपने गांव में खेत में काम कर रहे थे तो उन्हें एक पेड़ पर छोटे-छोटे फल लगे दिखे तो उन्हें उसके एक दो दाने लेकर चबाना शुरू किया. जो काफी खट्टे थे. उन्होंने इसकी चटनी बनाने के साथ जूस बनाकर पीने की सोची लेकिन उनके घरवालों ने इसे जानकारी के अभाव में जहर कहकर न खाने को कहा. जिस पर उनका मन नहीं माना और उन्होंने इन बीजों को एकत्र कर उसका जूस निकाला और दिल्ली के कृषि अनुसंधान केंद्र में इसकी जांच करवाई.

जांच में सामने आई खासियत

उन्हें आशा से अच्छे परिणाम मिले. अनुसंधान में पता चला कि यह जूस कई प्रकार की बीमारियों के लिए रामबाण के रूप में काम कर सकता है. थान सिंह ने अब इसका जूस निकालना शुरू किया और लोगों को पिलाने लगे. पहले पहल तो लोगों को इसका स्वाद अच्छा नहीं लगा लेकिन उसमें चीनी और अन्य मसाले मिलाने के बाद लोग इसे काफी पसंद करने लगे.

थान सिंह ने बताया कि उन्होंने जड़ी बूटी शोध संस्थान मंडल गोपेश्वर के साथ उद्यान विभाग से भी इसके बारे में जानकारी हासिल की. ताकि अधिक से अधिक लोगों तक इसको पहुंचाया जा सके और बाजार में बिकने वाला पेय पदार्थ के रूप में इसको बढ़ावा मिल सके.

थान सिंह बताते है कि उन्होंने अपने गांव में छह नाली भूमि पर अमेस के पांच सौ पौधों का रोपण किया हुआ है. जो अब फल देने लगे हैं. वे बताते हैं कि इसकी खेती के साथ एक समस्या है जिसका अभी तक हल नहीं निकल पाया है. वह यह है कि पांच पौध लगाने पर एक पौध ही जीवित रह पाता है बाकि चार नष्ट हो जाते हैं जो बड़ी समस्या है. साथ ही अभी तक उत्तराखंड में अमेस के बने प्रोडेक्ट को लोगों के बीच अच्छी पहचान और लाभकारी गुणों के रूप में प्रचार प्रसार नहीं मिल पाया है जिससे लोगों के बीच अभी तक यह पंसद किये जाने वाला पेय अथवा खाद्य सामग्री नहीं बन पाया है.

क्या है अमेस?

अमेस का वानस्पतिक नाम शी बेकथॉर्न है. जो जंगली प्रजाति का एक पेड़ है. जिस पर छोटे- छोटे पीले रंग के फल लगते हैं. यह कांटो से भरा होता है और ऊंचाई वाले स्थानों में पाया जाता है. पहले लोग इसे अपने खेतों की सुरक्षा (बाड़) करने के लिए लगाते थे ताकि जंगली जानवर खेती को नष्ट न कर सके. लेकिन उसके बाद लद्दाख में इसके उपयोग जूस, चटनी, जेम, चाय पत्ति के रूप में की गई.

यह हैं लाभ

इसका उपयोग ब्लड प्रेशर, खून की कमी दूर करने, गैस, शुगर, एग्जीमा के साथ अन्य बीमारियों में भी किया जाता है और जिसका अच्छा परिणाम भी मिलता है.

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