MP News : पीपीई किट पहनकर डाक्टरों और नर्सो ने किया प्रदर्शन,शौपे ज्ञापन

ऐसा कोई परिवार नहीं है जिसने कोरोना महामारी का सामना न किया हो। जब कोरोना पीड़ित को परिजन छोड़ कर चले जाते थे तो हमारे साथियों ने उन्हें सुधार कर सुरक्षित घर पहुंचाया।
पहले हमें भगवान का दर्जा दिया गया और बाद में हमें मंदिर से बाहर निकाल दिया गया. आज भी स्वास्थ्य क्षेत्र में स्टाफ की भारी कमी है. ग्रामीण इलाकों में सरकार ने करोड़ों रुपये के अस्पताल बनवाये हैं, लेकिन मेडिकल स्टाफ की कमी के कारण अस्पताल बंद हैं और लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है.
बालाघाट
2019 में जब पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा था, तब मानव संसाधन की कमी के कारण सरकार ने अस्थायी रूप से आयुष डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिकल और फार्मासिस्टों की नियुक्ति की, लेकिन दो साल पहले वर्ष 2011 में कोई बजट नहीं था। कोरोना में मेडिकल स्टाफ की भर्ती बंद कर दी गई है।
पहले तो बीजेपी ने उन्हें कोरोना योद्धा और भगवान कहकर फूल बरसाए और बाद में बजट का रोना रोककर उन्हें मंदिर से बाहर निकाल दिया. इसके लिए अस्थायी मेडिकल स्टाफ लगातार संघर्ष कर रहा है, लेकिन सरकार की ओर से उन्हें लेकर कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए जाने से अब कोरोना मेडिकल स्टाफ में आक्रोश दिख रहा है.
कोविड-19 में अस्थायी तौर पर रखे गए आयुष डॉक्टरों, नर्सों, पैरा मेडिकल स्टाफ और फार्मासिस्टों ने आज पीपीई किट पहनकर सरकार की उपेक्षा और कैबिनेट मंत्री गौरी शंकर बिसेन और कलेक्टर डॉ. पर आक्रोश व्यक्त करते हुए रैली निकाली। गिरीश कुमार मिश्र को ज्ञापन सौंपा। जिसमें सरकार से अस्पतालों में संविदा या रिक्त पदों पर भर्ती करने की मांग की गई है।
कोविड-19 में अस्थाई नियुक्ति पर रखे जाने के बाद नौकरी से निकाले गए मेडिकल स्टाफ का कहना है कि वैश्विक महामारी के दौरान भर्ती किए गए अस्थाई कोरोना योद्धाओं को राज्य सरकार ने 2 साल तक काम करने के बाद नौकरी से निकाल दिया है.
इन्हें बहाल करने के लिए कई बार प्रदेश के मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपने के बाद आज तक मुख्यमंत्री द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया है. जिसके विरोध में आज अस्थायी कोरोना योद्धाओं ने पीपीई किट पहनकर कोरोना योद्धाओं को नौकरी पर रखने के लिए आम जनता की ओर से समर्थन पत्र भेजा और कलेक्टर डाॅ. मिश्रा ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा।
कोविड में हमारे साथ काम किया और अब बाहर हैं
कोविड आयुष संघ पदाधिकारी डाॅ. अंकित असाटी ने बताया कि वर्ष 2019 में वैश्विक कोरोना महामारी में मानव संसाधन की कमी के कारण राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने दो वर्ष के लिए कोविड डॉक्टरों, नर्सों, फार्मासिस्टों, पैरा मेडिकल स्टाफ को कार्य पर लगाया।
जिसके बाद बजट की कमी का हवाला देकर कोविड अस्थायी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया. जिसके बाद से लगातार कोविड मेडिकल स्टाफ मुख्यमंत्री से बहाली की मांग कर रहा है लेकिन उनके द्वारा आज तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया है.
जिसे भगवान का दर्जा दिया गया उसे मंदिर से बाहर निकाल दिया गया
उन्होंने कहा कि ऐसा कोई परिवार नहीं है जिसने कोरोना महामारी का सामना न किया हो। जब कोरोना पीड़ित को परिजन छोड़ कर चले जाते थे तो हमारे साथियों ने उन्हें सुधार कर सुरक्षित घर पहुंचाया। पहले हमें भगवान का दर्जा दिया गया और बाद में हमें मंदिर से बाहर निकाल दिया गया.
जबकि आज भी स्वास्थ्य क्षेत्र में स्टाफ की भारी कमी है. ग्रामीण इलाकों में सरकार ने करोड़ों रुपये के अस्पताल बनवाये हैं, लेकिन मेडिकल स्टाफ की कमी के कारण अस्पताल बंद हैं और लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है.
रिक्त पदों पर नियुक्ति की मांग, आंदोलन की चेतावनी
उन्होंने कहा कि हमारी सरकार से मानवता के नाते मांग है कि रिक्त पदों पर हमारी नियुक्ति की जाये. एक ओर जहां सरकार लाडली बहना योजना के जरिए करोड़ों रुपए बांट रही है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए कोरोना मेडिकल स्टाफ रखने पर बजट का रोना बताया जा रहा है.
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार 20 सितंबर तक हमारे बारे में कोई निर्णय नहीं लेती है तो हम सभी कोविड कर्मी पूरे प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ 10 लाख पर्चे बांटेंगे और पीपीई किट पहनकर बीजेपी को वोट न देने की अपील करेंगे.
कलेक्टर डाॅ. गिरीश कुमार मिश्रा ने कहा कि कोविड कर्मचारियों का कहना है कि फिलहाल उन्हें कहीं और नौकरी पर रखा जाए. उनकी मांगें शासन स्तर की हैं। हम उनकी मांगों को शासन स्तर तक पहुंचाएंगे। जिसमें कोई भी निर्णय लेना हो तो शासन स्तर पर लेना होता है।
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