Mughal History: यहाँ जा कर बची थी मुग़लों की जान, जानें

Mughal History: एक तरफ शक्तिशाली गंगा की बाढ़ और दूसरी तरफ शेरशाह सूरी (Sher Shah Suri) की तलवार के साथ, नादानी ने हुमायूँ (Humayun) को ऐसी स्थिति में फँसा दिया, जहाँ उसके सामने केवल एक ही विकल्प था, अपनी जान बचाकर भागना। भागते समय वह सांसत में फंस गया। जून की बारिश ने गंगा को रौद्र रूप ला दिया था। हुमायूँ नदी की लहरों में फँस गया, तो आइये जानते है पूरा किस्सा-
चौसा (Chausa) की लड़ाई (मुगल सम्राट हुमायूँ और शेरशाह सूरी की लड़ाई) में उन्होंने अपने पिता बाबर की सारी कमाई खो दी। हारकर जब वह शेरशाह की पकड़ से दूर एक खंडहर में पहुंचा, तो रात हो चुकी थी। जंगल के बीच एक ऊंची पहाड़ी पर एक पराजित मुगल को नींद नहीं आती? उसे खोने या पकड़े जाने का डर होगा?
लेकिन, इतना कि उसे यह रात अच्छी तरह याद थी। वो जगह भी, जिसने उसे पनाह दी. फिर 51 साल बाद मुगल अमला फिर उसी जगह खड़ा हो गया. लेकिन, इस बार एक विजेता की तरह. तब मुगल बादशाह अकबर का झंडा पूरे भारत में लहरा रहा था। हुमायूँ ने अपने बाद के जीवन में किसी समय अकबर को इन खंडहरों के बारे में बताया होगा। संभव है कि उस युद्ध में हुमायूँ के साथ लड़ने वाले किसी सेनापति ने बाद में यह बात अकबर के कानों तक पहुंचा दी हो।
जो भी हो, लेकिन इतिहास तो यही है कि वहां मुगल दोबारा आये। उस भूमि पर एक टावर बनाया गया था जिसने उनके राजा को आश्रय दिया था। उसे तारीखें और घटनाएँ भी याद हैं, इसके लिए मीनार पर एक पत्थर रखा गया था, जिस पर अरबी में लिखी एक कविता कहती है, ‘जैसे सूरज चमकता है, वैसे ही हुमायूँ का नाम दुनिया में चमकता है, जो अब स्वर्ग में है।’ हुमायूँ ने वाराणसी में सारनाथ के निकट चौखंडी स्तूप में शरण ली। यह वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध (गौतम बुद्ध) ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने पांच साथियों से मिले थे।
क्या हुमायूँ को उस स्थान का महत्व पता होगा जहाँ वह शरण ले रहा है?
अब्दुल आरिफ का भी यही मानना है. उन्होंने कहा कि तीसरी से 11वीं सदी तक काशी बौद्ध धर्म से जुड़ी शिक्षा का केंद्र रहा। यहां कुल सात बौद्ध मंदिर थे। गुप्त काल के अलावा कुषाण वंश और राजा हर्षवर्द्धन ने भी इस स्थान का जीर्णोद्धार किया। एक समय में यहां लगभग 15 सौ बौद्ध शिक्षक रहा करते थे।
यानी लोगों को इस जगह की पवित्रता के बारे में पता था. इस मामले में, मुगलों को यह तो पता होगा कि यह स्थान विशेष है, लेकिन वे यह नहीं जानते होंगे कि यह विशेष क्यों है। इसका परिचय बाकी दुनिया से केवल एक दुर्घटना के कारण हुआ। यह बिल्कुल अलग कहानी है. तब चेत सिंह बनारस के राजा थे। जगत सिंह उनके दीवानों में से एक हुआ करते थे। वह अपने नाम पर एक नया मुहल्ला बसाना चाहता था। ईंटों और मलबे की जरूरत थी. उसकी नज़र शहर से दूर जंगल में खंडहरों पर पड़ी, जिसका कुछ हिस्सा उसने शायद तब देखा होगा।
चौखंडी स्तूप और हुमायूँ से संबंधित एक और कहानी है, जो जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है, जिसका नाम ‘ममता’ है। इसके अनुसार रोहतास दुर्ग का मंत्री चूड़ामणि शेरशाह के साथ युद्ध में मारा गया। उनकी पुत्री ममता किसी प्रकार शत्रुओं से बचती हुई काशी के उत्तर में स्थित धर्मचक्र विहार के खंडहरों में पहुँच गयी। वहां उन्होंने एक झोपड़ी बनाई और रहने लगे।
एक रात जब वह झोंपड़ी के अंदर दीपक की रोशनी में कुछ पढ़ रही थी, तभी आश्रय की आशा में हुमायूँ आ पहुँचा। ममता ने हुमायूँ को एक रात के लिए आश्रय दिया। अगली सुबह हुमायूँ ने वहाँ से चलते समय अपने सेनापति मिर्ज़ा से कहा, ‘इस जगह को याद रखना।’
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