समाज को संगठित करने के लिए तेजी से कार्य करने की जरूरत : मोहन भागवत

By नई ताकत न्यूज

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समाज को संगठित करने के लिए तेजी से कार्य करने की जरूरत : मोहन भागवत
-सरसंघचालक ने आदर्श विश्व बनाने के ‎लिए संगठन को मजबूत करने पर ‎दिया जोर

जींद (ईएमएस)। आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमें समाज को संगठित करने के लिए और अधिक तेजी से कार्य करना होगा। जब सम्पूर्ण राष्ट्र एकमुष्ठ शक्ति के साथ खडा होगा तो दुनिया का सारा अमंगल हरण करके यह देश फिर से विश्व गुरु बनकर खड़ा होगा। डॉ. मोहन भागवत रविवार को अपने प्रवास के तीसरे दिन गोपाल विद्या मंदिर में जींद नगर की शाखाओं के स्वयंसेवकों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ क्षेत्रीय संघचालक सीताराम व्यास, प्रांत संघचालक पवन जिंदल व विक्रम गिरी महाराज भी मौजूद रहे। संघ प्रमुख ने कहा कि जो विश्व के सामने संकट खड़े हैं, भारत के विश्वगुरु बनने से वह सब शांति, उन्नति को प्राप्त करेंगे। सारी समस्याओं को ठीक करते हुए सब राष्ट्र अपनी-अपनी विशिष्ठता के आधार पर अपना जीवन जीते हुए मानवता के जीवन में, सृष्टि के जीवन में अपना योगदान करते रहें। ऐसा एक आदर्श विश्व खड़ा करने की ताकत हिंदुओं की सगंठित अवस्था में है, उसी के चलते मंदिर बन रहा है। उन्होंने कहा ‎कि राम का मदिर बनने का आनंद है और आनंद करना चाहिए। अभी और बहुत काम करना है, लेकिन साथ में यह भी ध्यान रखेंगे कि जिस तपस्या के आधार पर यह काम हो रहा है वह तपस्या हमें आगे भी जारी रखनी है। जिसके चलते हमारे ध्येय की प्राप्ति होगी।

संघ प्रमुख ने कहा कि समाज में तीन शब्द चलते हैं क्रांति, उतक्रांति, संक्रांति तीनों का अर्थ परिवर्तन है परंतु परिवर्तन किस तरीके से आया उसमें अंतर आता है। संक्रांति हमारे यहां आदि काल से प्रचलित है। बड़े-बड़े कार्य स्व के आधार पर सत्य के आधार पर होते हैं। उनका जीवन शुद्ध, निष्कलंक, सतचरित्र था, विरोधी भी उनका सम्मान करते थे। अविचल दृढ़ता के साथ जो ध्येय निश्चित किया पूरा विचार करके उसकी सिद्धी के लिए डॉक्टर साहब अकेले चल पड़े और आगे चलकर बाकी सारी बातें धीरे-धीरे जुड़ गई। डॉक्टर साहब के सत्व, निश्चय को देखकर इस तपस्या को आगे जारी रखने के लिए संघ की पद्धति से हजारों स्वयंसेवक खड़े हुए।

मोहन भागवत ने कहा ‎कि ये जो दीर्घ तपस्या चली है उसके कारण देश के जीवन में जो परिवर्तन आने ही वाला है उसका प्रारंभ का संकेत श्रीराम मंदिर है। जैसे संक्रांति के बाद अच्छा परिवर्तन आता है। ठंड कम होकर गर्मी बढ़ती है और लोगों की कर्मशीलता बढ़ती ठीक उसी प्रकार देश के जीवन में भी अच्छा परिवर्तन आने वाला है। भारतवर्ष का शील ‘वसुधैव कुटुम्बकम’है।

दुनिया की ज्यादातर संस्कृति अपने शील के साथ मिट गई लेकिन हिंदू हर प्रकार के उतार-चढ़ाव से निकल कर भी जिंदा रह पाया है। यहां इतनी सारी भाषाएं, देवी-देवता, विविधि पंथ होने के बाद भी उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम भारतवर्ष का व्यक्ति मानता है कि हमें ऐसे जीना है कि हमको देख कर दुनिया ‎जिए। संघ प्रमुख ने कहा ‎कि हिंदू समाज के मन में था इसलिए गुलामी का प्रतीक ढहाया गया। इसके अलावा अयोध्या में किसी भी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं हुआ। कारसेवकों ने कहीं दंगा नहीं किया। हिंदू का विचार विरोध का नहीं प्रेम का है, इसे ही संक्रांति कहते हैं।

 

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