प्रकाश राज बोले – “फिल्म बैन करना जनता का हक छीनना है”, फवाद खान की ‘अबीर गुलाल’ पर दी प्रतिक्रिया

By Awanish Tiwari

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प्रकाश राज बोले – “फिल्म बैन करना जनता का हक छीनना है”, फवाद खान की ‘अबीर गुलाल’ पर दी प्रतिक्रिया

नई दिल्ली | मनोरंजन डेस्क
अपने बेबाक बयानों के लिए मशहूर अभिनेता प्रकाश राज एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार उनका बयान पाकिस्तान के अभिनेता फवाद खान की फिल्म ‘अबीर गुलाल’ पर लगे बैन को लेकर सामने आया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे उनके ताजा इंटरव्यू में प्रकाश राज ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में सेंसरशिप और बैन की प्रवृत्ति पर खुलकर अपनी राय रखी है।


 बैन के खिलाफ खड़े हुए प्रकाश राज

लल्लनटॉप से बातचीत के दौरान जब प्रकाश राज से फवाद खान की फिल्म ‘अबीर गुलाल’ के बैन पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट कहा,
“मैं किसी भी फिल्म को बैन करने के समर्थन में नहीं हूं, चाहे वो कोई प्रोपेगैंडा फिल्म हो या किसी और तरह की फिल्म। आपको उसे रिलीज करने देना चाहिए। दर्शकों को फैसला करने दो। यह उनका अधिकार है।”

प्रकाश राज ने यह भी कहा कि जब तक कोई फिल्म पोर्नोग्राफी या चाइल्ड एब्यूज जैसे आपत्तिजनक विषयों को नहीं दिखा रही, तब तक उसे बैन करने का कोई औचित्य नहीं है।


फिल्मों पर बैन या अभिव्यक्ति की हत्या?

प्रकाश राज लंबे समय से स्वतंत्र अभिव्यक्ति के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने कहा कि फिल्मों को रोकने या बैन करने की प्रवृत्ति लोकतंत्र को कमजोर करती है।
“सेंसरशिप की आड़ में सरकारें या संस्थाएं जो करती हैं, वो जनता के अधिकार को कुचलने जैसा है।”

यह पहली बार नहीं है जब प्रकाश राज ने सरकार या फिल्म नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई हो। इससे पहले भी वे कई बार धार्मिक मुद्दों, राजनीतिक विषयों और सामाजिक अन्याय पर मुखर हो चुके हैं।


‘अबीर गुलाल’ क्यों है विवादों में?

फवाद खान अभिनीत फिल्म ‘अबीर गुलाल’ हाल ही में भारतीय रिलीज़ से पहले बैन कर दी गई। फिल्म के कथित रूप से संवेदनशील विषयों और कुछ राजनीतिक दृश्यों को लेकर विवाद हुआ। हालांकि, अब तक फिल्म के निर्माता इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दे पाए हैं।

प्रकाश राज का यह बयान ऐसे समय आया है जब देश में फिल्मों पर सेंसरशिप और रचनात्मक स्वतंत्रता को लेकर बहस तेज़ है।


प्रकाश राज का संदेश – जनता को तय करने दो

अपने करियर में दर्जनों बेहतरीन फिल्मों में काम कर चुके प्रकाश राज का मानना है कि फिल्में समाज का आईना होती हैं, और उस आईने को झुकाने की कोशिश लोकतंत्र के मूल्यों को ठेस पहुंचाती है।
“अगर कोई फिल्म बुरी है, तो लोग उसे रिजेक्ट करेंगे, लेकिन आप पहले ही उसे रोककर जनता की समझ और विचार की शक्ति पर सवाल उठा रहे हैं,” उन्होंने कहा।


प्रकाश राज के इस बयान से एक बार फिर बहस छिड़ गई है कि कला और सिनेमा को किस हद तक सरकारी नियंत्रण में रखा जाना चाहिए, और क्या हम एक लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को वाकई सुरक्षित रख पा रहे हैं?

 

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