डॉ. मनमोहन सिंह ने बदल दी देश की अर्थव्यवस्था की दिशा
New Delhi News. देश में चीजों की कीमतें आसमान पर, विकास तो क्या सामान्य खर्च चलाने को खजाना खाली और विदेशी मुद्रा जुटाने के लिए सोना बेचने की नौबत…1991 की गर्मी में देश के इन हालात के बीच प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के एक फोन कॉल के बाद अर्थशास्त्री डॉ.मनमोहन सिंह(Dr.Manmohan Singh) ने देश की अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी…दुनिया के लिए हिंदुस्तान(Hindustan) के दरवाजे खोल दिए। विभिन्न official पदों से वित्त मंत्री और फिर दो बाद Prime Minister रहते हुए करीब आधी सदी से ज्यादा समय तक भारत की अर्थ नीतियों में Dr.Singh की छाप रही लेकिन उदारवाद के जनक के रूप में वित्त मंत्री(finance minister) का ओहदा संभालने का डॉ.सिंह का किस्सा रोचक है।
नरसिम्हा राव(Narasimha Rao) की जीवनी(Biography) लिखने वाले विनय सीतापति ने इसका किस्से का जिक्र किया है। कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक राव वित्त मंत्रालय के अलावा सभी प्रमुख मंत्रालय देख चुके थे, लेकिन उस समय देश के आर्थिक हालात को देखते हुए एक डायनैमिक वित्त मंत्री की जरूरत थी जिस पर Country के लोग, विरोधी दल और आइएमएफ-वर्ल्ड बैंक(IMF-World Bank) जैसी दुनिया की आर्थिक संस्थाएं विश्वास कर सकें। राव ने अपने सलाहकार पीसी एलेक्जेंडर से ऐसे व्यक्ति के बारे में पूछा तो RBI के पूर्व गवर्नर आइजी पटेल और Dr.Manmohan Singh का था। पटेल दिल्ली आने को राजी नहीं थे और मनमोहन पर आस टिकी।
सफल हुए तो श्रेय दोनों को, विफल हुए तो जाना होगा : नरसिम्हा राव
शपथ ग्रहण समारोह से तीन घंटे पहले खुद राव ने डॉ.सिंह को विश्वविद्यालय(university) अनुदान आयोग (यूजीसी) में फोन किया और प्रस्ताव दिया कि मैं आपको अपना वित्त मंत्री बनाना चाहता हूं। अगर हम सफल होते हैं तो हम दोनों को इसका श्रेय मिलेगा लेकिन अगर हमारे हाथ असफलता लगती है तो आपको जाना पड़ेगा। बाद में 1991 का जो बजट मनमोहन सिंह ने पेश किया वह देश के इतिहास का सबसे क्रांतिकारी बजट बन गया और Dr.Singh बन गए उदारवाद के जनक। डॉ.सिंह ने अर्थव्यवस्था की दिशा में जो बदलाव किए, उदारवाद की अलख जगाई..आगे की सरकारों ने इसे आगे बढ़ाया। 2004 में अप्रत्याशित रूप से Prime Minister बने मनमोहन ने सुधारों का दूसरा चरण शुरू किया और उसी राह पर चलकर आज देश दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गया।