प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना: पारंपरिक कारीगरों के लिए आत्मनिर्भरता की नई राह
नई दिल्ली | विशेष रिपोर्ट
भारत सरकार द्वारा पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों को सशक्त करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना की शुरुआत की गई है। यह योजना सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत संचालित हो रही है और देशभर में लाखों श्रमिकों को उनके पारंपरिक कौशल के माध्यम से सम्मानजनक और आत्मनिर्भर जीवन प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
‘व’ से विश्वकर्मा: योजना के केंद्र में कारीगर
इस योजना का फोकस ऐसे कारीगरों पर है जो पीढ़ियों से पारंपरिक शिल्प जैसे बढ़ईगीरी, लुहारी, कुम्हारी, सुनारगीरी, दर्जी कार्य आदि से जुड़े हैं। ‘व’ से शुरू होने वाला ‘विश्वकर्मा’ इन सभी को एकजुट करता है — योजना का नाम ही उनके गौरव का प्रतीक बन गया है।
प्रमुख लाभ और सुविधाएं:
1. मुफ्त प्रशिक्षण और वजीफा:
कारीगरों को 5 से 7 दिन का बुनियादी और 15 दिन का उन्नत प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें ₹500 प्रतिदिन का वजीफा भी सरकार द्वारा दिया जाता है ताकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को कोई अतिरिक्त बोझ न उठाना पड़े।
2. औजारों के लिए ई-वाउचर:
सरकार कारीगरों को उनके परंपरागत औजारों को आधुनिक बनाने के लिए ₹15,000 तक का ई-वाउचर प्रदान करती है, जिससे वे अपने काम को अधिक कुशलता से कर सकें।
3. ₹3 लाख तक का आसान ऋण:
विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत पात्र लाभार्थियों को ₹3 लाख तक का लोन बेहद कम ब्याज दर पर दिया जाता है, जिससे वे अपना व्यवसाय बढ़ा सकें या नया स्टार्टअप शुरू कर सकें।
4. डिजिटल लेनदेन पर प्रोत्साहन:
सरकार इस योजना के तहत डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन भी देती है, ताकि कारीगर आधुनिक व्यापारिक ढांचे से जुड़कर अपनी पहुंच और मुनाफा दोनों बढ़ा सकें।
पंजीकरण कैसे करें?
PM Vishwakarma Yojana में भाग लेने के लिए इच्छुक कारीगर www.pmvishwakarma.gov.in पोर्टल पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। आवेदन के लिए आधार कार्ड, बैंक पासबुक, मोबाइल नंबर और पेशे से संबंधित प्रमाण पत्र आवश्यक होते हैं।
नए भारत की कारीगरी को मिलेगी नई पहचान
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना केवल एक आर्थिक सहायता योजना नहीं है, बल्कि यह भारत के परंपरागत कारीगर वर्ग को मुख्यधारा में लाने की एक ऐतिहासिक पहल है। इससे न केवल स्थानीय रोजगार को बल मिलेगा, बल्कि ‘वोकल फॉर लोकल’ के नारे को भी मजबूती मिलेगी।
यह योजना उन हाथों को संबल देने का वादा करती है जो सदियों से भारत की सांस्कृतिक पहचान गढ़ते आ रहे हैं।