सिंगरौली रजिस्ट्री कार्यालय में चौंकाने वाला खुलासा: रजिस्टार ने दलालों को सौंपी ऑफिस की चाबी, साहिल सिंह और बुद्धसेन,अमर कर रहे खुलेआम वसूली

By Awanish Tiwari

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सिंगरौली रजिस्ट्री कार्यालय में चौंकाने वाला खुलासा: रजिस्टार ने दलालों को सौंपी ऑफिस की चाबी, साहिल सिंह और बुद्धसेन,अमर कर रहे खुलेआम वसूली

सिंगरौली | तहकीकाती विशेष रिपोर्ट:
सिंगरौली कलेक्ट्रेट परिसर में स्थित उप-पंजीयन कार्यालय (Sub Registrar Office) इन दिनों भ्रष्टाचार और दलाली के गढ़ में बदल गया है। ताजा खुलासा चौंकाने वाला है — रजिस्टार अशोक सिंह परिहार ने अपने भतीजे साहिल सिंह और सहयोगी बुद्धसेन,अमर को रजिस्ट्री कार्यालय की चाबी सौंप दी है, और ये तीनों बिना किसी वैध पद के खुलेआम वसूली और दस्तावेज़ प्रबंधन का काम कर रहे हैं।

भतीजे को मिला पूरा ऑफिस का “कंट्रोल”

साहिल सिंह, उप-पंजीयन अधिकारी अशोक परिहार का भतीजा, न तो सरकारी कर्मचारी है, न ही किसी संविदा पर कार्यरत।

इसके बावजूद रजिस्ट्री की कॉपियां देने, अंगूठा लगवाने, फाइलें संभालने और वेंडर्स से वसूली करने का पूरा जिम्मा उसी को सौंप दिया गया है।ये चर्चा का विषय बना हुआ है

साहिल सिंह और उसका साथी बुद्धसेन, अमर कार्यालय के भीतर एक निजी कमरे में दिनभर बैठकर यह सारा कार्य संचालित करते हैं।

 

वसूली का “रेट कार्ड” तय

सूत्रों के मुताबिक, उप-पंजीयन कार्यालय में रजिस्ट्री की प्रक्रिया का हर कदम अब ‘रेटेड’ हो चुका है

प्रशासन की चुप्पी या मिलीभगत?

यह पूरा घोटाला कलेक्ट्रेट के भीतर चल रहा है — कलेक्टर कार्यालय के एकदम समीप, लेकिन अब तक कोई औपचारिक जांच या कार्रवाई नहीं हुई।
सवाल ये है कि:

साहिल सिंह को ऑफिस की चाबी किस अधिकार से मिली?

कौन सी प्रक्रिया के तहत एक गैरकर्मचारी रजिस्ट्री ऑफिस का पूरा नियंत्रण चला रहा है?

क्या रजिस्टार अशोक परिहार के खिलाफ कोई विभागीय जांच शुरू की गई?

 

जनता की आवाज और विपक्ष का सवाल

स्थानीय नागरिकों, अधिवक्ताओं और वेंडर्स में भारी नाराजगी है।
विपक्षी नेताओं ने भी सवाल उठाया है कि:

“यदि सरकारी ऑफिसों में खुलेआम दलाल शासन चला रहे हैं, तो ‘डबल इंजन सरकार’ की ईमानदारी का दावा खोखला साबित होता है।”

यह मामला सिर्फ भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि प्रशासनिक मर्यादा और कानूनी प्रक्रिया के अपमान का है।
यदि जिला प्रशासन और शासन ने समय रहते सख्ती नहीं दिखाई, तो यह स्थिति न सिर्फ सरकार की साख गिराएगी, बल्कि आमजन का न्याय और पारदर्शिता से भरोसा भी उठ जाएगा।

अब सवाल सीधा है — क्या कार्रवाई होगी, या साहिल-बुद्धसेन, अमर जैसे नाम ऐसे ही सिस्टम पर हावी रहेंगे?

 

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