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Story : एक गधा था। उसका नाम था गुग्गू उसकी परेशानी यह थी कि उसकी नींद नहीं खुलती थी, इसलिए उसे रोज अपने मालिक की डांट सुननी पड़ती थी। एक दिन पड़ोस की गाय ने पूछा ,गुग्गू तू उदास क्यों है? मेरी नींद नहीं खुलती। गुग्गू बोला, ‘तू मुझे जगा देगी?’ गाय बोली, ‘ठीक है, दूसरे दिन गाय जोर-जोर से रंभाती रही पर गुग्गू नहीं जागा।
शाम को घाट से लौटा तो उसे रास्ते में मक्खी मिली बोली,‘ गुग्गू भाई, मैं तुम्हें जगा सकती हूं। अरे जाओ, इतनी बड़ी गाय मुझे नहीं जगह पाई तो तुम छोटी सी मक्खी मुझे क्या जगाओगी! सामने ही रास्ते में मोती डॉग मिल गया। मोती, मेरी नींद नहीं खुलती। तुम मुझे जगा दोगे? ‘हां क्यों नहीं।’ मोती बोला। अगले दिन मोती भौंकता रहा पर गुग्गू की नींद नहीं खुली।
दूसरे दिन शाम को गुग्गू की मुलाकात चीनू मुर्गे से हुई। चीनू, तुम्हारी आवाज से तो सभी हर सुबह जाग जाते हैं। क्या तुम मुझे भी जगा दोगे? ठीक है ,चीनू बोला। अगली सुबह कुकड़ू-कू, कुकड़ू-कु कर चीनू जोर-जोर से बांग लगा कर थक गया पर गुग्गू पर कोई असर नहीं हुआ।
शाम को गुग्गू ने कालू कौए को कांव-कांव करते देखा। भैया कालू क्या तुम मुझे सुबह जगा सकते हो? हां, हां जरूर। कालू बोला। अगले दिन कालू की कांव-कांव का भी गुन्नू पर कोई असर नहीं हुआ। वह निराश हो गया और सोचने लगा। मुझे कोई नहीं जगा सकता। अब तो रोज डांट खानी ही पड़ेगी। मक्खी गुग्गू को ऐसा करते रोज देखती थी।
अगले दिन सुबह-सुबह मक्खी उसकी नाक में जा बैठी। आ….आ…..आक छीं! ऐसा होते ही गुग्गू की नींद खुल गई। अरे मैं कैसे जाग गया! मैंने जगाया उसके सिर पर बैठी मक्खी बोली। सच! मुझे रोज जगा देगी? ठीक है पर अब तुम मुझे छोटा नहीं समझोगे। अरे नहीं, कभी नहीं, यह तरकीब काम आ गई! धन्यवाद मक्खी बहन, कहता हुआ गुग्गू खुशी से नाचने लगा अब मुझे डांट नहीं पड़ेगी।