“लव जिहाद या धोखा? जब कानून के रक्षक ही बन जाएं भक्षक”
स्थान: खंडवा, मध्यप्रदेश
घटना: नाम बदलकर शादी, जबरन अबॉर्शन और दूसरी शादी
आरोपी: पुलिस आरक्षक मुबारिक शेख (अनिल सोलंकी नाम से किया छल)
प्रस्तावना
भारत में “लव जिहाद” केवल एक धार्मिक बहस नहीं, बल्कि कई बार यह उस स्त्री के जीवन पर सीधा हमला होता है, जो प्रेम के नाम पर छल का शिकार होती है। जब यह धोखा किसी आम व्यक्ति की ओर से नहीं, बल्कि एक पुलिस वाले की ओर से हो — तो बात केवल निजी दर्द नहीं रह जाती, यह व्यवस्था की आत्मा को भी झकझोर देती है।
कहानी जो व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है
खंडवा की एक युवती की कहानी आज पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर रही है। उसने एक व्यक्ति से दोस्ती की, जिसने अपना नाम “अनिल सोलंकी” बताया। वह व्यक्ति असल में झाबुआ जिले का पुलिस आरक्षक मुबारिक शेख था।
5 साल तक युवती उसके साथ लिव-इन में रही, दो बार गर्भवती हुई — लेकिन उसे जबरन अबॉर्शन करवाने पर मजबूर किया गया। युवती को यह भी पता चला कि आरोपी ने दूसरी शादी कर ली है और उसके दो बच्चे हैं।
पुलिसकर्मी की पहचान सामने आने के बाद जब उसने विरोध किया, तो उसे धमकी दी गई — जान से मारने की भी।
प्रशासन का रवैया और कार्रवाई
पीड़िता की शिकायत के बाद आरोपी को सस्पेंड कर दिया गया है। लेकिन इससे सवाल खत्म नहीं होते।
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क्या पुलिस विभाग में वेरिफिकेशन और नैतिक मूल्यांकन नहीं होते?
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ऐसे लोग व्यवस्था का हिस्सा कैसे बनते हैं?
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पीड़िता को सुरक्षा और न्याय कब मिलेगा?
“लव जिहाद” या “पर्सनल ट्रेजेडी”?
यह सवाल अक्सर पूछा जाता है — क्या ये घटनाएं लव जिहाद के अंतर्गत आती हैं, या केवल व्यक्तिगत स्तर पर धोखे की कहानियां हैं?
इसका जवाब सरल नहीं, लेकिन इतना तय है कि “धोखे और छल” चाहे किसी भी धर्म से जुड़े व्यक्ति द्वारा किए जाएं — वे अपराध हैं और सजा योग्य हैं।
यहां धर्म से ज्यादा गंभीर मसला “पहचान छिपाकर संबंध बनाना”, “शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न”, और “महिला की स्वतंत्रता पर हमला” है।
समाज और सिस्टम — दोनों को जागना होगा
जब समाज की बेटियां खुद को असुरक्षित महसूस करें, और उनके साथ अत्याचार करने वाला कोई आम शख्स नहीं बल्कि वर्दीधारी हो — तो ये चेतावनी है कि कहीं न कहीं हम सब असफल हुए हैं।
हमें जरूरी है:
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युवाओं को जागरूक बनाना
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वैवाहिक और लिव-इन संबंधों में कानूनी जानकारी देना
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महिलाओं को जल्द न्याय और संरक्षण सुनिश्चित करना
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पुलिस जैसी संस्थाओं में चरित्र सत्यापन को सख्त करना
निष्कर्ष
खंडवा की यह घटना केवल एक महिला की त्रासदी नहीं — यह पूरे समाज और सिस्टम के लिए आईना है।
यह हमें बताती है कि “प्रेम” अगर छल में बदल जाए, और कानून के हाथ बंधे रह जाएं, तो न्याय की उम्मीद भी एक सवाल बनकर रह जाती है।
क्या आप भी किसी ऐसे धोखे का शिकार हुए हैं? या जानना चाहते हैं कि ऐसे मामलों में क्या कानूनी अधिकार होते हैं? नीचे कमेंट करें — हम आपकी मदद करने के लिए यहां हैं।
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