बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण का प्रचार रुक गया, 18% दलित मतदाता राजनीतिक ताज का फैसला करने वालों के हाथ में है ।
New Delhi, November 10: बिहार (Bihar) में विधानसभा चुनाव (assembly elections) के दूसरे और अंतिम चरण (final stage) का प्रचार थम गया है और अब सबकी निगाहें दलित (All eyes on Dalits) और मुस्लिम मतदाताओं (muslim voters) पर टिकी हैं। विश्लेषण के अनुसार, जनादेश की चाबी 18 प्रतिशत दलित मतदाताओं (dalit voters) के हाथ में है, जो लगभग 100 सीटों पर नतीजे बदलने (change results) की ताकत (Strength ) रखते हैं। इस बार जीतन राम मांझी और चिराग पासवान (Chirag Paswan) के एनडीए (NDA) के साथ आने से समीकरण (equation) बदल गए हैं।
कुल 18 प्रतिशत दलित समुदाय (dalit community) में से 13 प्रतिशत महादलित (2.5 प्रतिशत मुसहर सहित) और पाँच प्रतिशत पासवान (दुसाध) समुदाय (community) से हैं। लगभग 100 सीटें ऐसी हैं जहाँ इस समुदाय के मतदाताओं (voters) की आबादी प्रत्येक सीट पर 30 से 40 हज़ार के बीच है। इस बीच, सीमांचल समेत तीन दर्जन सीटों पर प्रभावशाली उपस्थिति (impressive presence) रखने वाला मुस्लिम समुदाय (Muslim community) भी नए नेतृत्व को लेकर असमंजस (Confusion) में है।
राजनीतिक पंडितों (political pundits) का मानना है कि चिराग पासवान (Chirag Paswan) और जीतन राम मांझी के साथ आने से पासवान और मुसहर बिरादरी के 7.5 प्रतिशत वोट एनडीए (NDA) के पक्ष में आ सकते हैं। पिछली बार एनडीए ने 1.6 प्रतिशत वोटों के अंतर से बहुमत हासिल (achieved majority) किया था। विपक्षी महागठबंधन (opposition grand alliance) के अलावा, एआईएमआईएम और नई नवेली जन सुराज पार्टी भी खुद को मुसलमानों का नेता (leader of muslims) साबित करने की पूरी कोशिश (Effort) कर रही है।






