Holi: लट्ठमार होली की कैसे हुई शुरुआत, जानें इसकी खासियत

By Ramesh Kumar

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Holi: ब्रज में होली (Holi) की शुरुआत बसंत पंचमी (Basant Panchami) से होती है, होलाष्टक (Holashtak) से ही ब्रज के मंदिरों में होली खेलना शुरू हो जाती है। जिसकी शुरुआत बरसाने की लड्डू मार (laddu maar) होली से होती है से होती है। इसके बाद लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता है. लट्ठमार होली (Lathmar holi) की परंपरा मुख्य रूप से भगवान कृष्ण के नंदगांव और राधा रानी के गांव बरसाने में कई वर्षों से चली आ रही है।

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लट्ठमार होली दो दिनों तक खेली जाती है। एक दिन बरसाने में और एक दिन नंदगांव में खेला जाता है, जिसमें बरसाने और नंदगांव के युवक-युवतियां भाग लेते हैं। एक दिन नंदगांव के युवा बरसाने जाते हैं और बरसाने की हुरियारिनें उन पर लाठियां बरसाती हैं और दूसरे दिन बरसाने के युवा नंदगांव पहुंचते हैं और लट्ठमार होली की परंपरा निभाते हैं। ब्रज में होली के त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है, जिसे लेकर लोगों में उत्साह और उमंग देखने को मिलती है।

ऐसे लट्ठमार होली की परंपरा शुरू हुई

ब्रज में होली के त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है, जिससे लोगों में उत्साह और उमंग देखने को मिलती है। लट्ठमार होली की परंपरा राधा रानी और श्री कृष्ण के समय से चली आ रही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, होली का त्योहार भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय है। होली के दिन भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ नंदगांव से राधारानी के गांव जाते थे। तब श्री कृष्ण और राधा रानी के साथ उनके मित्र अपने सखाओं के साथ होली खेलते थे, लेकिन राधा रानी के साथ मिलकर उनके सखा श्री कृष्ण और उनकी शाखाओं को झाड़ियों से पीटने लगे। माना जाता है कि तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज भी बरसाना और नंदगांव में यह परंपरा निभाई जाती है।

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