Holi Unique Traditions: होली (Holi) का त्यौहार (Festival) हर हिंदुओं के लिए बेहद ही खास होता है, होली का त्योहार पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. हमारे भारत देश के अलग-अलग जगह पर होली की अलग-अलग परंपराएं (Traditions) देखने को मिलती हैं. कहीं फूलों की होली खेली जाती है. तो कहीं पत्थरों की होली तो कहीं लठमार होली तो कहीं गोबर और कीचड़ (dung and mud) की होली तो आइये आज हम आपको बताएंगे कुछ ऐसे ही अनोखी परंपराएं (Holi Unique Traditions)-

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मप्र में गोंड आदिवासी परंपरा
मध्य प्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, बैतूल, झाबुआ, अलीराजपुर और डिंडोरी इलाकों के गोंड आदिवासी (Gond Tribal) होली और रंगपंचमी के बाद मेघनाद को अपना पसंदीदा देवता मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं और बकरों की बलि देते हैं। इस दौरान झंडा दौड़ प्रतियोगिता, बैलगाड़ी दौड़ और अन्य प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
इसके लिए एक डंडे को तेल और साबुन से चिकना किया जाता है, और उसमें लाल कपड़े में नारियल, माचिस और नकदी बांध दी जाती है। इसके बाद प्रतियोगिता में भाग लेने वाले युवक इस पोल पर चढ़ जाते हैं और ऊपर बंधे झंडे को तोड़ने की कोशिश करते हैं. इस दौरान युवतियां हरी बांस की डंडियों से युवकों को ऊपर चढ़ने से रोकती हैं और उनकी पिटाई करती हैं.
बरसाने की लठामार होली
ब्रज की होली देशभर में खास तौर पर मशहूर है. होली पूरे ब्रज मंडल में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। बरसाना की लट्ठमार होली में भाग लेने के लिए दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं। किंवदंती है कि एक बार भगवान कृष्ण राधाजी से मिलने बरसाना गांव गए तो यहां उन्होंने राधाजी और उनकी सखियों को छेड़ना शुरू कर दिया।
ऐसे में राधाजी और उनकी सखियों ने कृष्ण और ग्वालों को सबक सिखाने के लिए उन्हें लाठियों से पीटने की कोशिश की। तभी से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जाने लगी। इस त्योहार में महिलाएं बड़े ही मजाकिया अंदाज में हुरियारों (पुरुषों) को लाठियों से पीटती हैं। यह लट्ठमार होली बरसाना और नंदगांव के लोगों के बीच खेली जाती है और लट्ठमार होली के लिए फाग निमंत्रण दिया जाता है।
खून की होली राजस्थान के डूंगरपुर में खेली जाती है
डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में रघुनाथजी मंदिर के पास ‘पत्थरों की राड़’ होली बड़ी धूमधाम से खेली जाती है। इस होली में युवा एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं, जिससे कई लोग घायल भी हो जाते हैं. लेकिन उनके शरीर से खून निकलना शुभ माना जाता है। ये परंपरा 200 साल से चली आ रही है. इससे पहले, लोग पारंपरिक कपड़े पहनते हैं.
और फिर प्रसिद्ध नृत्य किए बिना होली के दर्शन करते हैं, फिर राड़ खेलने जाते हैं, और रघुनाथजी मंदिर में ढोल खाते हैं। यहां अलग-अलग पार्टियां पैरों में घुंघरू, हाथों में ढाल और साफा पहनकर एक-दूसरे को उकसाती हैं, फिर एक-दूसरे पर पत्थर फेंकती हैं। इलाज के लिए डॉक्टरों की टीम मौजूद है.
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