सात गांवों की भूमियों को औद्योगिक नीति एवं निवेश विभाग को सौंपे जाने का ग्रामीण कर रहे विरोध
जिपं सदस्य अशोक सिंह पैगाम के नेतृत्व में सात गांवों के ग्रामीणों ने एसडीएम को सौंपा ज्ञापन
सिंगरौली-दुधमनिया व चितरंग तहसील के सात गांवों की जमीन को औद्योगिक नीति एवं निवेश विभाग को सौंपने की कार्यवाही प्रारंभ हो गयी है जिसका ग्रामीणों के द्वारा जमकर विरोध किया जा रहा है। जिला पंचायत सदस्य अशोक सिंह पैगाम के के नेतृत्व में पिपरवान, – कुसाही, बड़गड़, बसनियां, डाला, कपूरदेई व सकेती के ग्रामीणों ने एसडीएम चितरंगी को ज्ञापन सौंपते हुए कार्रवाई पर रोक लगाये जाने की मांग की है। दिये गए आवेदन में कहा गया है कि औद्योगिक नीति व निवेश विभाग को सात गांवों की जमीन देने के लिए प्रशासन द्वारा जांच दल गठित किया गया है। इससे प्रतीत हो रहा है है कि कि इन इन गांवों को उजाड़ने तैयारी की जा रही है, लेकिन इन गांवों के आदिवासी व अन्य वर्ग के ग्रामीण अपनी भूमि देने के लिए तैयार नहीं है। हम लोगों को जानकारी मिली है कि मिसिरगवां आयरन ब्लॉक मेसर्स रॉक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित किया गया है। जिससे सात गांवों का भूमि अधिग्रहण किया जाना है, लेकिन इसके लिए ग्रामीणों से अनुमति नहीं ली गई है। इन गांवों में रहने वालेआदिवासियों की कई पुश्तें सदियों से यहीं जीवन यापन कर रही हैं। जमीन से बेदखल करने की चल रही तैयारी ग्रामीणों को मंजूर नहीं है, इसलिए गठित जांच दल को भंग कर चल रही कार्रवाई को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए अन्यथा आदिवासी समुदाय के ग्रामीण धरना प्रदर्शन के अलावा भूख हड़ताल के लिए बाध्य होंगे।
उन्होंने कहाकि चितरंगी विकास खंड अंतर्गत आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायतों में वनाधिकार अधिनियम के तहत पट्टा देने एवं उसकी जानकारी कम्प्यूटर में तत्काल दर्ज की जाए। सात गांवों के आदिवासी सदियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी रहते आ रहे हैं। ऐसे लोगों को शासन से वनाधिकार का पट्टा दिये जाने का प्रावधान है, लेकिन जानबूझकर वनाधिकार के आवेदनों को निरस्त कर दिया जाता है। मौके पर कोई अधिकारी परीक्षण के लिए नहीं जाता है, लेकिन अमान्य करते हुए जिला समिति को भेज दिया जाता हैं। इसलिए निरस्त प्रकरणों का स्थलीय निरीक्षण कराया जाए।
अशोक सिंह पैगाम ने आरोप लगाया कि डीएमएफ व सीएसआर मद से चितरंगी के गांवों का विद्युतीकरण किया जाना था, लेकिन 50 करोड़ का खर्च दिखा दिया गया। सभी दर्जनों गांव व मजरे अब भी विद्युत विहीन हैं। रिलायंस पावर प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा आदिवासियों को नहीं दिया गया, इसलिए उसे दिलवाया जाये।







