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UP: जनसंख्या और लोकसभा सीटों दोनों के लिहाज से राजनीतिक रूप से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है। लोकसभा चुनाव के छठे चरण में उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर शनिवार को मतदान है. पिछले चुनाव में बीजेपी के लिए यह सबसे कठिन चरण था, जहां विपक्ष ने न केवल कड़ी टक्कर दी बल्कि पांच सीटें जीतने में भी कामयाब रही | पूर्वांचल में जातीय ग्रिड पर सपा ने गैर-यादव ओबीसी पर दांव लगाया है तो बीजेपी ने भी ऊंची जाति का कार्ड खेला है. इस तरह बीजेपी और एसपी दोनों ने एक दूसरे की राह में कांटा डाल दिया है–UP
सपा ने बिछाई ओबीसी की बिसात!
छठे चरण की सियासी पिच पर सपा और बीजेपी दोनों ने जाति की बिसात बिछा दी है. छठे चरण की 14 में से 12 सीटों पर सपा चुनाव लड़ रही है, जबकि कांग्रेस इलाहाबाद और टीएमसी भदोही सीटों पर अपनी किस्मत आजमा रही है. सपा ने एक सीट को छोड़कर ज्यादातर सीटों पर गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवार उतारकर बीजेपी की राह में कांटा बिछा दिया है. सपा ने डुमरियागंज में सिर्फ एक ऊंची जाति का उम्मीदवार उतारा है और बाकी सभी सीटों पर पिछड़ों और दलितों को टिकट दिया है |
बीजेपी का दांव उच्च वर्ग पर
बीजेपी छठे चरण की सभी 14 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर सियासी रणभूमि में हैं. इस चरण की 12 सामान्य सीटों पर बीजेपी ने ज्यादातर ऊंची जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है. सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, इलाहाबाद और बस्ती सीटों पर बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे हैं जबकि जौनपुर और डुमरियागंज सीटों पर ठाकुर बिरादरी के उम्मीदवार उतारे हैं. आज़मगढ़ में यादव, प्रतापगढ़ में तेली, फूलपुर में कुर्मी जबकि भदोही में संत कबीर नगर और मल्लाह समुदाय के उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है।
सपा की नई सोशल इंजीनियरिंग
उत्तर प्रदेश में पिछले कई चुनावों में गैर-यादव पिछड़ी पार्टियों को एकजुट कर बड़ी सफलता हासिल कर रही बीजेपी को एसपी की इस नई रणनीति से मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. सपा की ओर से बड़ी संख्या में गैर-यादव पिछड़े उम्मीदवारों के आने के बाद अब बीजेपी को डर है कि उसका पुराना समीकरण बिगड़ जाएगा. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक गैर-यादव ओबीसी वोट पाकर बीजेपी ने दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव जीते, जिनमें कुर्मी, मल्लाह और मौर्य बीजेपी के कट्टर वोट माने जाते हैं. एसपी ने बीजेपी के ब्राह्मण और ठाकुर उम्मीदवारों के खिलाफ गैर-यादव ओबीसी को मैदान में उतारा है. इस चुनाव में सपा ने पीडीए फॉर्मूले को पूरी तरह से ध्वस्त करने की कोशिश की है, जो बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन गया है.
छठा चरण कैसे पार करेगी बीजेपी?
बीजेपी छठे चरण में अपने उच्च जाति वोट बैंक को साधे रखते हुए ओबीसी और दलित वोटों को जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. छठे चरण में पिछड़ेपन के असर को देखते हुए बीजेपी ने सहयोगी दलों के पिछड़े नेताओं के साथ-साथ इस वर्ग के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और नेताओं को भी चुनाव प्रचार में उतारा है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को यादव बहुल जौनपुर, आज़मगढ़, फूलपुर, सुल्तानपुर, भदोही और अम्बेडकरनगर में निषाद पार्टी के डॉ. निषाद को लाया गया है। संजय निषाद की जनसभाएं हुईं.
राजभरों की बड़ी संख्या वाले आज़मगढ़, लालगंज, जौनपुर, मछलीशहर और बस्ती में सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर की रैलियां हुईं. जौनपुर में जहां भारत गठबंधन ने मौर्य-कुशवाहा समुदाय के प्रभावी नेता बाबू सिंह कुशवाहा को मैदान में उतारा है, वहीं बीजेपी ने महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य की रैली कराकर सियासी समीकरण साधने की कोशिश की है. बीजेपी जनवादी क्रांति पार्टी के अध्यक्ष संजय चौहान को अपने पाले में लाने में कामयाब हो गई है और अब नोनिया बिरादरी की अच्छी संख्या वाली सीटों- लालगंज, भदोही, जौनपुर, संत कबीरनगर और आज़मगढ़ में उसकी बैठकें हो रही हैं. इसके अलावा बीजेपी ने जौनपुर और मछलीशहर सीट पर भी धनंजय सिंह को मैदान में उतारा है. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी की रणनीति कितनी कारगर होती है?