उपभोक्ताओं को अधिकार पाने के लिए सीधी तक की लगानी पड़ती है दौड़
Singrauli News: Singrauli. उपभोक्ताओं को अपना अधिकार पाने सीधी तक दौड़ लगानी पड़ती है क्योंकि जिले में उपभोक्ता फोरम नहीं है। पिछले कई वर्षों से उपभोक्ता फोरम की मांग की जा रही है। मगर अब तक पूरी नहीं हो सकी। जब भी आप कोई चीज खरीदते हैं तो अक्सर दुकानदार, कंपनी, डीलर (shopkeeper, company, dealer) या सर्विस प्रोवाइडर्स अपने मुनाफे के लिए आपको धोखा दे सकते हैं।
अगर ऐसे में Customer की दुकानदार, कंपनी, डीलर या सर्विस प्रोवाइडर्स सुनवाई नहीं करते तो consumer फोरम यानी की उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। मगर अफसोस इस बात का है कि districts में उपभोक्ता फोरम ही नहीं है। बता दें कि उपभोक्ता फोरम एक official संस्था होती है जहां विक्रेता और सप्लायर के खिलाफ शिकायत दर्ज की जाती है। इन्हें उपभोक्ता court भी कहा जाता है जो अधिनियम के तहत जिला, राज्य(district, state) और राष्ट्रीय स्तर पर ग्राहक अविलंबित समस्याओं का समाधान कर दोषियों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाती है।
उपभोक्ता यहां करें शिकायत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता अपने अधिकारों के लिए शिकायत कर सकते हैं। उपभोक्ता अदालत में शिकायत की जा सकती है। शिकायत करने से पहले निर्माण कंपनी या डेवलपर को नोटिस भी भेजा जा सकता है। इसके लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का सहारा भी ले सकते हैं। शिकायम के लिए वेबसाइट पर भी उपलब्ध पते का उपयोग किया जा सकता है।
जिला एक कंज्यूमर फोरम के लिए अभी प्रयासरत है। जिला अधिवक्ता संघ सिंगरौली के पूर्व उपाध्यक्ष एवं सचिव सर्वहित सेवा संस्थान अधिवक्ता अवनीश दुबे ने कहा, जिला बनने के 16 वर्ष बाद भी कंज्यूमर फोरम नहीं है। जिले में उपभोक्ताओं की दशा यह है कि 110 किमी सीधी में आवेदन कंज्यूमर फोरम में लगाने जाना पड़ता है और सुनवाई के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। उससे निजात पाने के लिए जिले में कंज्यूमर फोरम स्थापित करने की आवश्यकता है। शासन व प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। उपभोक्ताओं के विधिक संरक्षण एवं उनके अधिकारों को दिलाने के लिए उपभोक्ता फोरम की स्थापना हो। अधिवक्ता अवनीश कुमार दुबे ने लगातार कई बार उपरोक्त संबंध में पत्राचार भी किया लेकिन शासन और प्रशासन अभी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।
उपभोक्ता फोरम यहां जिले में संचालित नहीं है। इस वजह से ज्यादातर उपभोक्ता अपनी आवाज नहीं उठा पाते हैं। सीधी तक की दौड़ न लगानी पड़े। इसलिए अधिकार के हनन के बाद भी चुप बैठ जाते हैं।