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Singrauli News: अपने भ्रष्टाचार के लिए हमेशा सुर्खियों में रहने वाला नगर पालिक निगम सिंगरौली एक बार फिर स्टोर एवं स्वच्छता के नाम पर करोड़ों के हुए गोलमाल को लेकर चर्चा मे है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अपने आपको नियम का पाबंद दिखाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने जांच का स्वांग रचा। जांच भी उसी नगर निगम के अधिकारी कर रहे हैं जहां करोड़ों का बन्दरवाट हुआ। इतना ही नहीं जांच टीम ने ऐसे भी लोग शामिल हैं जिनकी संलिप्तता इस बन्दरवाट में भी होने से नकारा नहीं जा सकता। Singrauli News
ऐसी स्थिति में जांच से क्या परिणाम आयेंगे यह तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन शाखा प्रभारी को शाखा के प्रभार से पृथक किये बिना कराया जा रहा यह जांच का ड्रामा अपने आपमें ही संदिग्ध नजर आ रहा है। बहरहाल अटकलों का बाजार गर्म है। जन चर्चाओं के अनुसार नगर पालिक निगम सिंगरौली में बीते वर्ष करीब 8-9 माह में करोड़ों का खेला हुआ। शाखा प्रभारी एवं तत्कालीन आयुक्त द्वारा नगर पालिक निगम सिंगरौली की राशि का उपयोग अपनी व्यक्तिगत राशि की तरह करते हुए अपने चहेतों को इत्मीनान से उपकृत किया।
बहती गंगा में जहां तत्कालीन आयुक्त के चहेतों ने डूबकी लगाई वहीं स्टोर प्रभारी के चहेते भी स्नान करने से नहीं चूके। यह अलग बात है कि वर्तमान में जांच का खेल खेला जा रहा है। जांच के लिए दी गई समय सीमा पूरी हो चुकी है। लेकिन जांच की मंथरगति के कारण अभी तक कुछ साफ नजर नहीं आ रहा है। उम्मीद भी दूध का दूध और पानी का पानी होने की कम ही पाई जा रही है।
चहेतों को उपकृत करने लगी होड़
नगर पालिक निगम सिंगरौली की स्थापना के बाद यह पहला समय होगा जब 8-9 महीने के कार्यकाल में चहेतों को उपकृत करने की होड़ सी देखी गई है। अपने चहेते संविदाकारों को मालामाल करने के लिए नियम कायदों को दर किनार कर नगर पालिक निगम सिंगरौली की राशि का जमकर बन्दरवाट किया गया। आवश्यकता की वस्तुओं की आपूर्ति तो कराई ही गई आने वाले दो तीन सालों के लिए ही आपूर्ति एडवान्स में करा ली गई। इतना ही नहीं लोकल मार्केट की सामाग्री का भुगतान बाजार भाव से चार गुना तक अधिक किया गया। महत्वपूर्ण बात यह रही कि तत्कालीन आयुक्त के संकेत पर जहां उनके चहेतों को उपकृत किया गया है। वहीं स्टोर प्रभारी ने भी मौके का फायदा उठाते हुए अपने चहेतों को भी लगे हांथ मालामाल कर दिया।
बिना सामाग्री आये ही हो गया भुगतान
नगर पालिक निगम सिंगरौली में किस प्रकार खेला हुआ इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वच्छता एवं सफाई के नाम पर 50-60 लाख के केमिकल की आपूर्ति का कार्यादेश चहेतों को जारी किया गया। संबंधित केमिकल कब आये कहां उपयोग हुए यह कह पाना तो मुश्किल है क्योंकि चर्चाओं के अनुसार यह केमिकल नगर पालिक निगम सिंगरौली तक पहुंचे ही नहीं। लेकिन संबंधित फर्मो को भुगतान कर दिया गया है। यह कोई पहली घटना नहीं है, स्वच्छता के नाम पर लाखों का गोलमाल 8-9 महीने जमकर चला।
डबल फाईल प्रथा बनी चर्चा का कारण
नगर पालिक निगम सिंगरौली में चहेतों को उपकृत करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रख कर नये नियम तक बना डाले। चर्चा तो यहां तक है कि हैण्डपम्पों की मरम्मत हेतु क्रय की जाने वाली सामाग्री के लिए दो फाईलें बनी। एक फाईल में आपूर्ति हेतु दिये गये कार्यादेश के अनुसार आपूर्ति न होने की स्थिति में भी भुगतान कर दिया गया। जबकि दूसरी फाईल में सामाग्री आने के बाद भुगतान किया गया। अहम बात तो यह है कि आखिर ऐसी क्या परिस्थितयां बनी कि हैण्डपम्प मरम्मत हेतु सामाग्री क्रय किये जाने की दो फाईलें बनानी पड़ी। जो चर्चा का कारण बनी हुई है।
मौजूद सामाग्री के बाद भी हुई खरीददारी
नगर पालिक निगम सिंगरौली के तत्कालीन आयुक्त एवं उनके संरक्षण में स्टोर प्रभारी द्वारा चहेतों को उपकृत करने का वीड़ा उठा लिया गया था। जिसके चलते स्वच्छता के नाम पर ऐसी सामाग्री भी क्रय की गई जो नगर पालिक निगम सिंगरौली के स्टोर में पहले से ही मौजूद है। इतना ही नहीं नगर पालिक निगम सिंगरौली के अन्तर्गत लगभग 28 बोरवेल हैं,जिनमें पूर्व से सब मर्सिबल पम्प लगे हुये है। इसके बाद भी लगभग 300 सब मर्सिबल पम्पों की खरीददारी कर ली गई। इतना ही नहीं इन पम्पों की आपूर्ति करने वाले संविदाकार को नगर पालिक निगम सिंगरौली द्वारा बाजार भाव से चार गुना अधिक राशि का भुगतान डंके की चोट पर कर दिया गया है।
गिने चुने संविदाकारों पर बरसी कृपा
नगर पालिक निगम सिंगरौली में सामाग्री खरीदी के नाम पर व्यापक पैमाने पर गोलमाल हुआ। निश्चित ही इस गोलमाल में बहती गंगा में हांथ धोने का अवसर नगर पालिक निगम सिंगरौली के उन संविदाकारों को भी मिलना चाहिए था। जो नगर पालिक निगम सिंगरौली में लम्बे समय से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं सका। कुछ चुनिन्दा सप्लायरों पर ही कृपा बरसी। जिनमें गोसिया इन्टरप्राईज शिव कान्सट्रकशन, बिन्दू कान्सट्रक्शन, मदान इन्फ्रास्ट्रैक्चर जैसी नामचीन संविदा एजेंसिया शामिल हैं। इन संविदा एजेंसियों पर तत्कालीन आयुक्त के साथ-साथ स्टोर प्रभारी की भी कृपा भरपूर बरसी।
अब जांच के नाम पर की जा रही लीपापोती
माना यह जा रहा था कि वर्तमान आयुक्त नियम कायदों के पाबंद अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं। उनके द्वारा जांच कराये जाने के लिए गये निर्णय से जहां संबंधित अधिकारियों में हड़कम्प मचा हुआ था वहीं आम लोग भी आशा भरी निगाहों से आयुक्त की ओर टकटकी लगाये देख रहे थे। उनका मानना यह था कि लोगों के खून पसीने की कमाई का बन्दरवाट करने वालों के खिलाफ कार्यवाही होगी। लेकिन जांच हेतु निर्धारित समय सीमा बीतने एवं जांच की मंथर चाल को देख कर लोगों को यह भ्रम भी टूटने की कगार मे है। चर्चाएं तो यहां तक है कि सब कुछ मैनेज हो चुका है। अब बस कागजी कार्यवाही ही शेष है। जिसे पूरा कर लिया जायेगा।