स्कूलों की मरम्मत के लिए अनुरक्षण राशि के भुगतान पर जिला पंचायत सीईओ द्वारा रोक लगाये जाने से मचा हड़कंप

By Awanish Tiwari

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स्कूलों की मरम्मत के लिए अनुरक्षण राशि के भुगतान पर जिला पंचायत सीईओ द्वारा रोक लगाये जाने से मचा हड़कंप

दिसम्बर में मरम्मत करायी गयी 11 विद्यालयों का पुन: मरम्मत कराने के नाम पर मांगे गये थे 45 लाख

नई ताकत न्यूज नेटवर्क

सिंगरौली-शासकीय विद्यालयों की मरम्मत हेतु शासन से आयी अनुरक्षण राशि के बंदरबांट पर जिला पंचायत सीईओ द्वारा रोक लगा दी गयी है जिससे जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में हड़कंप मचा हुआ है। बताया जाता है कि जिन विद्यालयों का दिसंबर माह में मरम्मत हुआ था उन्हीं विद्यालयों की मरम्मत के लिए 45 लाख रूपये अनुरक्षण राशि के भुगतान हेतु डीईओ कार्यालय से फाइल भेजी गयी थी।
डीईओ ने इसके लिए एडीपीसी कविता त्रिपाठी को दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ लामबंदी शुरू कर दी है। स्कूल शिक्षा विभाग के जानकारों की मानें तो सत्र 2025 के लिए शासन से विद्यालयों की मरम्मत के लिए 50 लाख रुपये आए हैं। जिसके लिए सहायक यंत्री द्वारा क्षतिग्रस्त स्कूलों के चयन के बाद इस्टीमेट तैयार किया जाना था। विद्यालय में क्षतिग्रस्त हिस्से का फोटो लगाकर मांगपत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य था।यह सारी प्रक्रिया नोटशीट के माध्यम से की जानी थी, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी ने बगैर प्रक्रिया का पालन किये ही खास 11 विद्यालयों में मरम्मत के लिए लगभग 45 लाख का भुगतान करने फाइल ट्रेजरी में भेज दी थी। इसकी जानकारी होने के बाद एडीपीसी कविता त्रिपाठी ने इस प्रक्रिया को गलत बताते हुए जिला पंचायत सीईओ से शिकायत की थी। जिस पर उन्होंने कार्रवाई करते हुए ट्रेजरी अफसर को भुगतान करने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का आदेश जारी किया है।
जानकारों की माने तो जिला शिक्षा अधिकारी जिन 11 स्कूलों की मरम्मत के नाम पर 45 लाख रुपये का भुगतान करने की तैयारी कर चुके थे वहां गत दिसंबर माह में मरम्मत के नाम पर भुगतान किया जा चुका है। ऐसे स्कूलों में चरगोड़ा, रजमिलान, खटाई व अमहरा शामिल हैं।

बताया जाता है कि खटाई व अमहरा में मात्र दो कक्ष है। इसके बावजूद दोबारा 5-5 लाख दिये जा रहे थे। अनुरक्षण राशि से मरम्मत करने के लिए पहले मांगपत्र मंगाया जाना था, लेकिन डीईओ ने इस नियम को दरकिनार करने के साथ पहले हुए कार्यों का उपयोगिता प्रमाणपत्र भी नहीं मंगवाया है। स्कूलों में अपने खास शिक्षकों को प्राचार्य का प्रभार दे दिये हैं। इसके बाद शासन से आई राशि स्कूलों को स्वीकृत कर पुन: अपने पास मंगाते रहते हैं। इस तरह हर साल लगभग 3 करोड़ की बंदरबांट की जा रही है। इसके लिए खास वेंडरों को काम दिया जाता है। मैटेरियल की सप्लाई किये बगैर फर्जी बिल लगवाने के बाद उसका भुगतान दिखा दिया जा रहा है।

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