5 साल बाद फिर खुलेगा कैलाश मानसरोवर का मार्ग: 15 जून से नाथू ला रूट से होगी यात्रा की शुरुआत
नई दिल्ली।
पांच वर्षों के लंबे अंतराल के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर नाथू ला पास के माध्यम से शुरू होने जा रही है। यह खबर लाखों श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों के लिए बड़ी राहत लेकर आई है, जो वर्षों से इस पवित्र यात्रा के पुनः आरंभ होने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
15 जून को गंगटोक से होगी यात्रा की शुरुआत
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, पहला जत्था 15 जून 2025 को गंगटोक से रवाना होगा। इस वर्ष यात्रा के लिए कुल 10 जत्थों का गठन किया गया है और प्रत्येक जत्थे में 48 तीर्थयात्री होंगे। यह पवित्र यात्रा लगभग 20 से 21 दिनों की होगी, जिसमें श्रद्धालु नाथू ला पास से होकर कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन करेंगे।
सुरक्षा और स्वास्थ्य का रखा गया पूरा ध्यान
चूंकि यात्रा अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों से होकर गुजरती है, इसलिए यात्रियों की स्वास्थ्य जांच, फिटनेस प्रमाण पत्र, और सुरक्षा मापदंडों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, और सिक्किम सरकार की संयुक्त निगरानी में यात्रा का आयोजन होगा।
चीन के साथ सहयोग से संभव हुई बहाली
यह मार्ग चीन के तिब्बत क्षेत्र में प्रवेश करता है और भारत-चीन के बीच आपसी सहमति से यात्रियों को सीमित संख्या में प्रवेश की अनुमति मिलती है। कोविड-19 महामारी और सीमावर्ती तनावों के कारण यह यात्रा वर्ष 2019 से बंद थी। अब दोनों देशों के बीच सामरिक और धार्मिक समझौते के तहत यात्रा दोबारा शुरू की जा रही है।
नाथू ला मार्ग की खासियत
- यह मार्ग अन्य पारंपरिक मार्ग, जैसे लिपुलेख, की तुलना में कम थकावट वाला और सुरक्षित माना जाता है।
- यहां सड़क मार्ग से अधिकतर यात्रा संभव है, जिससे वरिष्ठ नागरिकों और शारीरिक रूप से कमजोर यात्रियों को राहत मिलती है।
यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
कैलाश पर्वत को हिंदू धर्म में भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है, जबकि मानसरोवर झील को मोक्ष का प्रतीक कहा गया है। इसके अलावा यह स्थान बौद्ध, जैन और तिब्बती धार्मिक मान्यताओं में भी पवित्र माना जाता है।
कैसे करें आवेदन?
यात्रा में शामिल होने के इच्छुक श्रद्धालु विदेश मंत्रालय की official Kailash Mansarovar Yatra portal पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। स्वास्थ्य जांच, पासपोर्ट, और अन्य दस्तावेजों की प्रक्रिया समय से पूरी करना अनिवार्य है।
यह यात्रा न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि भारत-चीन संबंधों में सांस्कृतिक संवाद की मिसाल भी बनती है। पांच साल बाद इसका पुनः आरंभ होना तीर्थयात्रियों के लिए आशा और आस्था का संचार है।